Sunday, October 2, 2011

chaand ka khaalipan

आज षष्ठी का चाँद आसमान में लटक रहा था,
कुछ यूँ, जैसे किसी छोटे बच्चे ने एक कटोरी हाथ में लटका रखी हो,
इस आस में कि शायद कहीं से कुछ आ गिरे उसमें,
कई बार तारों से उसे भरने कि कोशिश करी है,
लेकिन सब छलक जाते हैं,
कटोरी सीधी नहीं रह पाती है,
काश गरबा से पेट भी भर जाता.
कटोरी जितनी खाली होती जाती है,
अँधेरा उतना ही गहराता जाता है,
महीने में एक ही दिन भरी कटोरी मिल पाती है.

चलो इस बार कुछ यूँ करें कि सबकी कटोरियाँ भरें,
और पूरे महीने पूरनमासी देखें!

3 comments:

  1. Beautiful ! My first time here & have already browsed thru quite a few pages.

    I didn't know you write with such love. I adding your blog to my reader. :)

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