Thursday, October 9, 2014

kuch yun

इससे पहले भी कई बार भीड़ में अकेला महसूस किया है खुद को
isse pehle bhi kai baar bheed me akela mehsoos kiya hai khud ko

पर आज तो यूँ हुआ की आइना देखा तो उसमें कोई न था!
 par aaj to yun hua ki aaina dekha to usmen koi na tha!!

Saturday, May 10, 2014

Mere naye zevar

कुछ नए ज़ेवर बनवाने का मन है!
कुछ चीज़ें इकठ्ठा हैं शायद काम आ जाएं. 
सोचती हूँ कि तुम्हारी खिलखिलाहट के झुमके कैसे लगेंगे. 
तुम जो प्यार से मां कहती हो, उसकी बालियां कैसी लगेंगी. 
तुम जो अपनी ही किसी जुबां में लम्बा सा कुछ बोल देती हो उसकी माला बनवाऊँ तो?
घर में तुम जो अपनी खुशबू बिखेरती हो उसके कंगन हों तो कैसा हो,
आँखें मटका के जो इशारे करतीं हो उसकी पायल पहनूँ तो?
नन्ही सी बाहें जब गले में डालती हो और झाँक के देखतीं हो, उसका मांग टीका कैसा रहेगा,
आँखें चमका के जब मुस्कुरातीं हो उसकी बिंदी कितनी  सुन्दर होगी. 
इन ज़ेवरों से तो कभी मन नहीं भरेगा,
अच्छा है इनके लिये लॉकर की ज़रुरत नहीं होती.

Saturday, March 8, 2014

mujhe mahila diwas ki shubhkaamnaayein mat do (Don't wish me women's day!)

मुझे महिला दिवस की शुभकामनायें  मत दो!

जिस दिन मैं पैदा हुई, उस दिन ये मत कहो की चलो कोई बात नहीं!
जब मैं खेलने जाऊं तो ये मत कहो कि ये तुम्हारे खेल नहीं!
जब मैं पढ़ने जाऊं तो ये मत कहो कि इतना पढ़ के क्या होगा!
जब मैं कुछ बनना चाहूं तो ये मत कहो कि ये तुम कैसे बन सकती हो!
 जब मैं कपडे पहनूं तो मुझे ये मत कहो कि तुम ये मत पहनो!
जब मैं अकेली जाऊं तो ये मत कहो कि पापा को ले जाओ!
जब मैं बस में जाऊं तो मुझे अलग कुर्सी मत दो!
जब कोई आदमी रोये तो मत कहो कि क्या औरतों कि तरह रोते हो!
जब मेरे साथ कुछ गलत हो तो ये मत कहो कि तुम चुप रहो!

मुझे एक ऐसी दुनिया दो जहाँ मुझे रोज़ ये याद न दिलाया जाए कि मैं एक महिला हूँ!
ये मेरा सपना है!
अब ये मत कहो कि तुम सपने मत देखो!