ये दुनिया
शतरंज का बोर्ड,
और हम सब इसके मोहरे.
कुछ छोटे कुछ बड़े.
राजा है
जिनका क्षेत्र संकुचित है
चालें संतुलित.
अपना कहने को
केवल एक घर,
कहलाते फिर भी राजा ही हैं.
कुछ हाथी सरीखे हैं.
केवल
सीधी राह चलते हैं.
और कुछ ऊँट के सामान
टेढ़े टेढ़े ही.
घोड़ों जैसी फितरत है
कुछ की,
एक ही छालांग में
सब पा लेने को आतुर.
बोर्ड पर
ढेर सारे पैदल हैं.
ताकतवर किन्तु निरीह.
सीधे सीधे टकरा भी तो नहीं सकते.
कैसी त्रासदी है उनकी,
चल तो देते हैं,
पर
वापस लौट नहीं सकते.
ye to bohot purani hai na?
ReplyDeleteschool mein likhi thi tumne.
good one.
ReplyDeleteWonderful
shatranj ko samaaj se jodkar bahut nayee vyakkhya ki hai.vishesh roop se paidal aur ghode ki.bahut-bahut-bahut badhia.
ReplyDeletesundar rachna...har mohre ki apne jazbaat, apni aukat, apne khwaab hote hai
ReplyDeleteif u get tym, wud love to know yer views on my attempt on Shantranj written bahot pehle
http://antarmannn.blogspot.com/2011/05/blog-post_17.html