Thursday, February 24, 2011

safar

एक सुबह यादों के सफ़र पे निकली, मैं,
कुछ पलों को फिर से जीने की कोशिश थी,
कुनकुनी सुबह को माँ का आँचल बना के लपेट लिया,
और रौशनी को पिता की ऊँगली की तरह पकड़ के चल पड़ी, मैं,
 सफ़र में कई ऐसे पल मिले,
जिन्हें मैंने जिंदा किया था कभी,
और कई ऐसे भी थे,
जिन्होंने बुझे हुए लम्हों में,
मुझमें जान भरी थी,
पाँव ठिठक गए,
जब यादों का वो गाँव आया,
जिसमें मेरे बचपन की खुशबू अभी भी बसी हुई थी,
नानी की कहानियों से महकती हुई रातें,
नाना के दुलार से चमकता आसमान,
पड़ोस से आती तंदूर की सौंधी तपन,
उन सारे पलों को फिर से जीने की ख्वाहिश है.
राह पे चलते हुए देखा,
की मुझसे पहले भी कोई इनसे हो के गुज़रा है,
आगे बढ़ते हुए यादों पे जो सूराख बन जाते हैं,
किसी ने उन यादों की रफू करने की कोशिश की है,
राह पे बहुत से फूल बिखरे थे,
सोचा उठा के ले चलूँ सब,
यादों के सफ़र से जितना मिल जाये उतनी ज़िन्दगी आराम से कटेगी,
पर न जाने क्या हुआ,
की थोड़े से उठा के लगा जैसे मेरी झोली भर गयी,
उस दिन पता चला,
की दुआओं में बड़ा वज़न होता है!! 
  
   
 
 













Wednesday, February 23, 2011

ek Inch!


एक इंच,
इसे छोटा न समझना!

ट्रेन में किसी से कभी,
एक इंच खिसकने को कहा है?
स्टेशन पे लगी बेंच पर,
एक इंच की जगह मांगी है?

चेहरे पे ऐसी मायूसी आ जाती है,
जैसे किसी ने कश्मीर पर कब्ज़ा कर लिया हो!
या फिर,
किसी ने ताज को चिंगारी दी हो!!

थकी हारी शाम को,
आँखें मूंदे घर जाते लोग!
जो करना है, उससे आँखें मूंदे!!
जो नहीं करना है, उससे आँखें मूंदे!!

अपने चारों तरफ एक इंच का दायरा बनाकर,
बाकी सबसे आँखें मूंदे!!
शायद सोचते हौंगे,
फिर ये एक इंच हो न हो!!