Friday, November 12, 2010

Raat ka Ujaala!

Just wanted to scribble something on what I have come across very often in this city. Shadows standing in the dark. But...is the dark always dark?...Not for me...the dark reveals many truths that are hidden in the light.  

रात के उजाले में देखा है कई बार,
पर्दों को गिरते और शर्म को मरते हुए
दिन की धूप भी जिसे देख न सके,
रात ढूंढ लेती है उन अरमानों को मचलते हुए
अजनबी से जो लगते हैं साए दिन में,
महफ़िल बन जाते हैं शाम के ढलते हुए
रौशनी में जो सुनाई न दें,
रात गुज़रती है वो कहानी कहते हुए
रात अँधेरी है या दिन की ही जुड़वां,
उम्र गुज़र जाती है यही समझते हुए!

2 comments:

  1. Thanks Richa! IT would be nice if you could explain how you've understood it...I have been hearing interesting interpretations!!

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