I am a psychologist and a researcher. Have done my PhD on cancer patients. My research was both quantitative and qualitative. So, my research often gets extended in my thoughts. This blog is an example of the same:
Written on 21st August '09
आज एक बार फिर ज़िन्दगी के बारे में सोचा. कुल मिला के देखो तो वो है क्या? जो समय हम अपनों के साथ हंस के बिताते हैं, वो? अगर बैठ कर ज़िन्दगी के बारे में सोचो, या एक मूवी चलाओ उसकी, तो क्या याद रहता है? मेरे हिसाब से, हमारी ख़ुशी के लम्हे, अपनों का प्यार, वो फीलिंग्स जब हम किसी के काम आये, मतलब सब कुछ qualitative. अपनी लाइफ भी अपनी research जैसी लगती है. कुछ हिस्सा quantitative और कुछ qualitative. कल सरीन सर ने सही कहा, "अहले चमन से मांग के लाये थे चार दिन, दो आरज़ू में कट गए, दो इंतज़ार में." ज़िन्दगी को जैसे चलाना चाहो, वो वैसे ही चलती है.
आज फिर ज़िन्दगी और passbook एक जैसे लग रहे हैं. पलट के देखो तो जितना क्रेडिट amount हो passbook में, वो अच्चा लगता है. ज़िन्दगी भी कुछ वैसी ही है. उसको जितना दो उतना अच्छा लगता है. लेकिन क्या दे सकते हैं हम उसे? ज़िन्दगी शायद! ज़िन्दगी को ज़िन्दगी इसीलिए कहते होंगे क्यूंकि उसे हम जिंदा करते हैं.
जैसे passbook में जितना क्रेडिट करो उतना ही निकाल भी सकते हैं. उसी तरह जितना हम ज़िन्दगी को देते होंगे, उतना ही वो भी हमें भी देती होगी. जितना उसे प्यार दो, उतना ही वो भी हमें देती होगी. जितना रेस्पेक्ट दो, उतना ही वो भी हमें देती होगी. passbook में तो सिर्फ अपने अकाउंट में क्रेडिट करने पर आपको कुछ मिलता है. लेकिन ज़िन्दगी तो ऐसी है, जिसमें अगर दूसरों की लाइफ में कुछ दो तो भी आपको बहुत कुछ मिलता है. शायद इसीलिए ज़िन्दगी qualitative ज्यादा है!
Written on 21st August '09
आज एक बार फिर ज़िन्दगी के बारे में सोचा. कुल मिला के देखो तो वो है क्या? जो समय हम अपनों के साथ हंस के बिताते हैं, वो? अगर बैठ कर ज़िन्दगी के बारे में सोचो, या एक मूवी चलाओ उसकी, तो क्या याद रहता है? मेरे हिसाब से, हमारी ख़ुशी के लम्हे, अपनों का प्यार, वो फीलिंग्स जब हम किसी के काम आये, मतलब सब कुछ qualitative. अपनी लाइफ भी अपनी research जैसी लगती है. कुछ हिस्सा quantitative और कुछ qualitative. कल सरीन सर ने सही कहा, "अहले चमन से मांग के लाये थे चार दिन, दो आरज़ू में कट गए, दो इंतज़ार में." ज़िन्दगी को जैसे चलाना चाहो, वो वैसे ही चलती है.
आज फिर ज़िन्दगी और passbook एक जैसे लग रहे हैं. पलट के देखो तो जितना क्रेडिट amount हो passbook में, वो अच्चा लगता है. ज़िन्दगी भी कुछ वैसी ही है. उसको जितना दो उतना अच्छा लगता है. लेकिन क्या दे सकते हैं हम उसे? ज़िन्दगी शायद! ज़िन्दगी को ज़िन्दगी इसीलिए कहते होंगे क्यूंकि उसे हम जिंदा करते हैं.
जैसे passbook में जितना क्रेडिट करो उतना ही निकाल भी सकते हैं. उसी तरह जितना हम ज़िन्दगी को देते होंगे, उतना ही वो भी हमें भी देती होगी. जितना उसे प्यार दो, उतना ही वो भी हमें देती होगी. जितना रेस्पेक्ट दो, उतना ही वो भी हमें देती होगी. passbook में तो सिर्फ अपने अकाउंट में क्रेडिट करने पर आपको कुछ मिलता है. लेकिन ज़िन्दगी तो ऐसी है, जिसमें अगर दूसरों की लाइफ में कुछ दो तो भी आपको बहुत कुछ मिलता है. शायद इसीलिए ज़िन्दगी qualitative ज्यादा है!
Beautifully Brilliant!!!
ReplyDeleteI read your blog. It is amazing. Your blog is good every line is understandable. I am working in 24 hour Des Moines Towing company. My friend refer reading your post.
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