एक सुबह यादों के सफ़र पे निकली, मैं,
कुछ पलों को फिर से जीने की कोशिश थी,
कुनकुनी सुबह को माँ का आँचल बना के लपेट लिया,
और रौशनी को पिता की ऊँगली की तरह पकड़ के चल पड़ी, मैं,
सफ़र में कई ऐसे पल मिले,
जिन्हें मैंने जिंदा किया था कभी,
और कई ऐसे भी थे,
जिन्होंने बुझे हुए लम्हों में,
मुझमें जान भरी थी,
पाँव ठिठक गए,
जब यादों का वो गाँव आया,
जिसमें मेरे बचपन की खुशबू अभी भी बसी हुई थी,
नानी की कहानियों से महकती हुई रातें,
नाना के दुलार से चमकता आसमान,
पड़ोस से आती तंदूर की सौंधी तपन,
उन सारे पलों को फिर से जीने की ख्वाहिश है.
राह पे चलते हुए देखा,
की मुझसे पहले भी कोई इनसे हो के गुज़रा है,
आगे बढ़ते हुए यादों पे जो सूराख बन जाते हैं,
किसी ने उन यादों की रफू करने की कोशिश की है,
राह पे बहुत से फूल बिखरे थे,
सोचा उठा के ले चलूँ सब,
यादों के सफ़र से जितना मिल जाये उतनी ज़िन्दगी आराम से कटेगी,
पर न जाने क्या हुआ,
की थोड़े से उठा के लगा जैसे मेरी झोली भर गयी,
उस दिन पता चला,
की दुआओं में बड़ा वज़न होता है!!
beautiful
ReplyDeleteatyant madhur,saras aur kavya guno se paripoorn. p.s. aur baso nani k pados me.
ReplyDeletebahut sunder.mummy,v.k.uncle-aunty
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